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सु॒वीरं॑ र॒यिमा भ॑र॒ जात॑वेदो॒ विच॑र्षणे। ज॒हि रक्षां॑सि सुक्रतो ॥२९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

suvīraṁ rayim ā bhara jātavedo vicarṣaṇe | jahi rakṣāṁsi sukrato ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सु॒ऽवीर॑म्। र॒यिम्। आ। भ॒र॒। जात॑ऽवेदः॑। विऽच॑र्षणे। ज॒हि। रक्षां॑सि। सु॒ऽक्र॒तो॒ इति॑ सुऽक्रतो ॥२९॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:16» मन्त्र:29 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:26» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:29


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजा को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (जातवेदः) उत्पन्न हुआ प्रज्ञानबल जिनके उन (विचर्षणे) तेजस्वी तथा (सुक्रतो) उत्तम बुद्धि और कर्म्म से युक्त राजन् ! आप (सुवीरम्) सुन्दर वीर जिससे होते हैं उस (रयिम्) धन को (आ, भर) सब ओर से धारण करिये और (रक्षांसि) दुष्टाचारियों को (जहि) नष्ट करिये ॥२९॥
भावार्थभाषाः - राजा को चाहिये कि सदा ही धन आदि से धार्मिक विद्वान् और क्षत्रिय कुल में हुए वीरों की उत्तम प्रकार रक्षा करे और दुष्टों का सदा तिरस्कार करे ॥२९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राज्ञं किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे जातवेदो विचर्षणे सुक्रतो ! राजँस्त्वं सुवीरं रयिमाऽऽभर रक्षांसि जहि ॥२९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सुवीरम्) शोभना वीरा येन भवन्ति तम् (रयिम्) धनम् (आ) (भर) (जातवेदः) जातप्रज्ञानबल (विचर्षणे) तेजस्विन् (जहि) (रक्षांसि) दुष्टाचारान् (सुक्रतो) सुष्ठु प्रज्ञाकर्म्मयुक्त ॥२९॥
भावार्थभाषाः - राज्ञा सदैव धनादिना धार्मिका विपश्चितः क्षत्रियकुलोद्भवा वीरा संरक्ष्य दुष्टाः सदा तिरस्करणीयाः ॥२९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजाने सदैव धन इत्यादींनी धार्मिक विद्वान व क्षत्रिय कुळात असलेल्या वीरांचे उत्तम प्रकारे रक्षण करावे व दुष्टांचा तिरस्कार करावा. ॥ २९ ॥